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Friday, October 14, 2022

अव्यय - हिंदी व्याकरण

अव्यय

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जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है उन्हें अव्यय (अ + व्यय) या अविकारी शब्द कहते है ।

इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'अव्यय' ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नही होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होता, अतः ये अव्यय हैं।

जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात इत्यादि।

अव्यय और क्रियाविशेषण

पण्डित किशोरीदास बाजपेयी के मतानुसार, अँगरेजी के आधार पर सभी अव्ययों को क्रियाविशेषण मान लेना उचित नही; क्योंकि कुछ अव्यय ऐसे हैं, जिनसे क्रिया की विशेषता लक्षित नहीं होती। जैसे- जब मैं भोजन करता हूँ, तब वह पढ़ने जाता हैं। इस वाक्य में 'जब' और 'तब' अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते। अतः, इन्हें क्रियाविशेषण नहीं माना जा सकता।

निम्नलिखित अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते-

(i) कालवाचक अव्यय

 इनमें समय का बोध होता है। जैसे- आज, कल, तुरन्त, पीछे, पहले, अब, जब, तब, कभी-कभी, कब, अब से, नित्य, जब से, सदा से, अभी, तभी, आजकल और कभी। उदाहरणार्थ-

अब से ऐसी बात नहीं होगी।

ऐसी बात सदा से होती रही है।

वह कब आया, मुझे पता नहीं।

(ii) स्थानवाचक अव्यय

 इससे स्थान का बोध होता है। जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, यहाँ से, वहाँ से, इधर-उधर। उदाहरणार्थ-

वह यहाँ नहीं है।

वह कहाँ जायेगा ?

वहाँ कोई नहीं है।

जहाँ तुम हो, वहाँ मैं हूँ।


(iii) दिशावाचक अव्यय-

 इससे दिशा का बोध होता है। जैसे- इधर, उधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आरपार।

(iv) स्थितिवाचक अव्यय

नीचे, ऊपर तले, सामने, बाहर, भीतर इत्यादि।

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अव्यय के भेद

अव्यय निम्नलिखित चार प्रकार के होते है -

(1) क्रियाविशेषण 

(2) संबंधबोधक 

(3) समुच्चयबोधक 

(4) विस्मयादिबोधक 

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(1) क्रियाविशेषण 

जिन शब्दों से क्रिया, विशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट हो, उन्हें 'क्रियाविशेषण' कहते है।

दूसरे शब्दो में- जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते है, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है।


जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है।

इन वाक्यों में 'धीरे-धीरे', 'वहाँ' और 'अभी' राम के 'टहलने' (क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्रियाविशेषण दूसरे क्रियाविशेषण की भी विशेषता बताता हैं।

वह बहुत धीरे चलता है। इस वाक्य में 'बहुत' क्रियाविशेषण है; क्योंकि यह दूसरे क्रियाविशेषण 'धीरे' की विशेषता बतलाता है।

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(2)सम्बन्धबोधक अव्यय

 जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहलाते ।

दूसरे शब्दों में- जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते है, उसे 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहते हैं।

यदि यह संज्ञा न हो, तो वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलायेगा।

जैसे- दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि।

उदाहरण- वृक्ष के 'ऊपर' पक्षी बैठे है।

धन के 'बिना' कोई काम नही होता।

मकान के 'पीछे' गली है।

उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द 'वृक्ष और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है।

दूसरे वाक्य में 'बिना' शब्द 'धन' और 'काम' में सम्बन्ध दर्शता है।

तीसरे वाक्य में 'पीछे' शब्द 'मकान' और 'गली' में सम्बन्ध दर्शाता है।

अतः 'ऊपर' 'बिना' 'पीछे' शब्द सम्बन्धबोधक है।

विशेष- यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध न जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-


सम्बन्धबोधक  क्रिया-विशेषण

दुकान 'पर' ग्राहक खड़ा है।  दुकान 'पर' खड़ा है।

मेज के 'ऊपर' किताबें है।  मेज के 'ऊपर' है।

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(3)समुच्चयबोधक अव्यय 

 जो अविकारी शब्द दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते है, उन्हें समुच्चयबोधक कहते है।

दूसरे शब्दों में- ऐसा पद (अव्यय) जो क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर एक वाक्य या पद का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या पद से जोड़ता है, 'समुच्चयबोधक' कहलाता है।

सरल शब्दो में- दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते है।

जैसे- यद्यपि, चूँकि, परन्तु, और किन्तु आदि।

उदाहरण- आँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ 'और' अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- 'आँधी आयी', 'पानी बरसा'- को जोड़ता है।

समुच्चयबोधक अव्यय पूर्ववाक्य का सम्बन्ध उत्तरवाक्य से जोड़ता है।

इसी तरह समुच्चयबोधक अव्यय दो पदों को भी जोड़ता है। जैसे- दो और दो चार होते हैं।

राम 'और' लक्ष्मण दोनों भाई थे।

मोहन ने बहुत परिश्रम किया परन्तु 'सफल' न सका।

उपयुक्त पहले वाक्य में 'और' शब्दों को जोड़ रहा है तथा दूसरे वाक्य में 'परन्तु' दो वाक्यांशों को जोड़ रहा है। अतः ये दोनों शब्द समुच्चयबोधक है।

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(4)विस्मयादिबोधक अव्यय 

 जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।

दूसरे शब्दों में- जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।

इन अविकारी शब्दों का प्रयोग वाक्य के प्रारम्भ में होता है तथा इनका वाक्य की रचना से सीधा संबंध नहीं होता। इन शब्दों के बाद विशेष चिह्न (!) लगता है।

जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ ?

हैं! तुम क्या कर रहे हो ? यहाँ 'हाय!' और 'है !'

अरे! पीछे हो जाओ, गिर जाओगे।

इस वाक्य में अरे! शब्द से भय प्रकट हो रहा है।

विस्मयादिबोधक अव्यय है, जिनका अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं।

व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। 'अब मैं क्या करूँ ? इस वाक्य के पहले 'हाय!' जोड़ा जा सकता है।

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