पत्र लेखन
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पत्र के प्रकार
पत्र दो प्रकार के होते हैं l
1 ]अनौपचारिक पत्र
जिन लोगों से हमारे व्यक्तिगत संबंध होते हैं, उन्हें हम अनौपचारिक पत्र लिखते हैं। इन पत्रों में व्यक्ति अपने मन की अनुभूतियों, भावनाओं सुख-दुख की बातों आदि का उल्लेख करता है। अतः इन पत्रों को ‘व्यक्तिगत पत्र’ भी कह सकते हैं। इन पत्रों की भाषा-शैली में अनौपचारिकता का पुट देखा जा सकता है।
2 ]औपचारिक पत्र
ये पत्र औपचारिक संदर्भों में लिखे जाते हैं। जिन लोगों के साथ इस तरह का पत्राचार किया जाता है, उनके साथ हमारे व्यक्तिगत संबंध नहीं होते। औपचारिक परिवेश होने के कारण इन पत्रा में तथ्यों और सूचनाओं को अधिक महत्व दिया जाता है।
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अनौपचारिक पत्राचार
अनौपचारिक पत्राचार - पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं l
पत्र लेखक का पता
पत्र के सबसे ऊपर बाई ओर पत्र लेखक को अपना पता लिखना चाहिए। यदि छात्रों को परीक्षा भवन’ में पत्र लिखने के निर्देश दिए गए हैं, तो उन्हें अपना पता न लिखकर ‘परीक्षा ‘भवन’ तथा नगर का नाम, जहाँ परीक्षा हो रही है, लिख देना चाहिए। छात्रों को ऐसा कोई भी संकेत नहीं देना चाहिए, जिससे उनके बारे में कोई भी जानकारी किसी को भी मिल सके।
जैसे- परीक्षा भवन, मुंबई
दिनांक
पत्र लेखक को चाहिए कि पता लिखने के बाद ठीक उसके नीचे उस दिन का दिनांक लिखें I जैसे- दिनांक: dd/mm/yyyy
संबोधन
अनौपचारिक पत्राचार में ‘संबोधन’ का विशेष महत्व होता है क्योंकि पत्र पढ़ने वाला सबसे पहले इसी को पढ़ता है। इन संबोधनों के माध्यम से पत्र लेखक पाठक के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है। संबोधनों को देखकर ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पत्र अपने से छोटे को लिखा गया है या बड़े को तथा कितना प्यार या सम्मान व्यक्त किया गया है।
संबोधन के कुछ नमूने इस प्रकार हैं:
पूज्य पिता जी / माता जी / गुरु जी आदि।
आदरणीय चाचा जी / मामा जी / भाई साहब / दीदी / भाभी जी आदि।
श्रद्धेय चाचा जी / गुरुवर आदि।
प्रिय भाई /मित्र आदि।
शिष्टाचार सूचक पदबंध/अभिवादन की उक्तियाँ- शिष्टाचार या अभिवादन के वाक्य इस बात पर निर्भर करते हैं कि संबोधन किस प्रकार का है शिष्टाचार के कुछ पदबंध इस प्रकार हैं- चरणस्पर्श, प्रणाम, नमस्कार, वंदे, सस्नेह/सप्रेम नमस्ते, प्रसन्न रहो, चिरंजीवी रहो आदि।
विषयवस्तु या मूल कथ्य- शिष्टाचार सूचक शब्दों के बाद पत्र की मूल विषयवस्तु आती है। इसे पत्र का कथ्य भी कहते हैं। इसके अंतर्गत लेखक वे सभी बातें, विचार आदि व्यक्त करता है, जिन्हें वह पाठक तक संप्रेषित करना चाहता है। इसी से लेखक की अभिव्यक्ति क्षमता, भाषा, कथ्य को प्रस्तुत करने का तरीका आदि का पता चलता है।
समापन निर्देश या स्वनिर्देश- कथ्य की समाप्ति के बाद पत्र के समापन की बारी आती है। पत्र-समापन से पहले आत्मीय जनों के विषय में पूछताछ, आदर-सम्मान आदि का भाव व्यक्त किया जाता है। अंत में ‘स्वनिर्देश के अंतर्गत पत्र लेखक तथा पाठक के मध्य के संबंधों के आधार पर संबंधसूचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है; जैसे- आपका… आपका ही… तुम्हारा अपना स्नेहाकांक्षी… आदि।
पत्र लेखक का नाम- ‘स्वनिर्देश’ के नीचे पत्र लेखक को अपना नाम लिखना चाहिए। परीक्षा भवन में पत्र लिखते समय नाम के स्थान पर xxxx xxxx xxxx लिख सकते है l
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अनौपचारिक पत्र के प्रकार
अनौपचारिक पत्र के निम्नलिखित प्रकार के होते हैं l
🔰बधाई पत्र
🔰 शुभकामना पत्र
🔰निवेदन पत्र
🔰संवेदना/सहानुभूति/सांत्वना पत्र
🔰नाराजगी/खेद पत्र
🔰सूचना/वर्णन संबंधी पत्र
🔰निमंत्रण पत्र
🔰आभार-प्रदर्शन पत्र
🔰अनुमति पत्र
🔰सुझाव/सलाह पत्र
🔰क्षमायाचना एवं आश्वासन संबंधी पत्र
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अनौपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखे
🔰भाषा सरल व स्पष्ट होनी चाहिए।
🔰 पत्र लेखक तथा प्रापक की आयु, योग्यता, पद आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए।
🔰 पत्र में लिखी बात संक्षिप्त होनी चाहिए।
🔰 पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
🔰 भाषा और वर्तनी-शुद्ध तथा लेख-स्वच्छ होना चाहिए।
🔰 पत्र प्रेषक व प्रापक वाले का पता साफ व स्पष्ट लिखा होना चाहिए।
🔰 कक्षा/परीक्षा भवन से पत्र लिखते समय अपने नाम के स्थान पर क० ख० ग० तथा पते के स्थान पर कक्षा/परीक्षा भवन लिखना चाहिए।
🔰अपना पता और दिनांक लिखने के बाद एक पंक्ति छोड़कर आगे लिखना चाहिए।
🔰 पत्र में काट छांट नही होनी चाहिए।
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